04-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

संगमयुग की श्रेष्ठ वेला श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर बनाने की वेला

देश विदेश से आये, सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने के पुरुषार्थी बच्चों प्रति अव्यक्त बापदादा बोले:-

‘‘आप बापदादा हरेक ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मा के श्रेष्ठ जीवन के जन्म की वेला, तकदीर की रेखा देख रहे थे। जन्म की वेला सभी बच्चें की श्रेष्ठ हैं क्योंकि अभी युग ही पुरूषोत्तम श्रेष्ठ है। श्रेष्ठ संगमयुग पर अर्थात् श्रेष्ठ वेला में सभी का श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म हुआ। जन्म वेला सभी की श्रेष्ठ है। तकदीर की रेखा, तकदीर भी सभी ब्राह्मणों की श्रेष्ठ है। क्योंकि श्रेष्ठ बाप के शिव वंशी ब्रह्माकुमार वा कुमारी हैं। तो श्रेष्ठ बाप, श्रेष्ठ जन्म, श्रेष्ठ वर्सा, श्रेष्ठ परिवार, श्रेष्ठ खज़ाने - यह तकदीर की लकीर जन्म से सभी की श्रेष्ठ है। वेला भी श्रेष्ठ और प्राप्ति के कारण तकदीर की लकीर भी श्रेष्ठ है। यह तकदीर सभी बच्चों को एक बाप द्वारा एक जैसी प्राप्त है। इसमें अन्तर नहीं है। फिर भी एक जैसी तकदीर प्राप्त होते भी नम्बरवार क्यों? बाप एक, जन्म एक, वर्सा एक, परिवार एक, वेला भी एक संगमयुग, फिर नम्बर क्यों? सर्व प्राप्ति अर्थात् तकदीर सभी को बेहद की मिली है। अन्तर क्या हुआ? बेहद की तकदरी को जीवन के कर्म की तस्वीर में लाना इसमें यथा शक्ति होने के कारण अन्तर पड़ जाता है। ब्राह्मण जीवन अर्थात् तकदीर को तस्वीर में लाना, जीवन में लाना। हर कर्म में लाना, हर संकल्प से, बोल से, कर्म से तकदीरवान को तकदीर अनुभव हो अर्थात् दिखाई दे। ब्राह्मण अर्थात् तकदीरवान आत्मा के नयन, मस्तक, मुख की मुस्कराहट हर कदम सभी को श्रेष्ठ तकदीर की अनुभूति करावे। इसको कहा जाता है - तकदीर की तस्वीर बनाना। तकदीर को अनुभव की कलम से, कर्म के कागज के तस्वीर में लाना। तकदीर के तस्वीर की चित्र रेखा बनाना। तस्वीर तो सभी बना रहे हो लेकिन किसकी तस्वीर सम्पन्न है और किसकी तस्वीर कुछ न कुछ किसी बात में कम रह जाती है। अर्थात् प्रैक्टिकल जीवन में लाने में किसकी मस्तक रेखा अर्थात् मंसा, नयन रेखा अर्थात् रूहानी दृष्टि, मुख की मुस्कराहट की रेखा अर्थात् सदा सर्व प्राप्ति स्वरूप सन्तुष्ट आत्मा। सन्तुष्टता ही मुस्कराहट की रेखा है। हाथों की रेखा अर्थात् श्रेष्ठ कर्म की रेखा। पांव की रेखा अर्थात् हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने की शक्ति। इसी प्रकार तकदीर की तस्वीर बनाने में किसका किस में, किसका किस में अन्तर पड़ जाता है। जैसे स्थूल तस्वीर भी बनाते हैं तो कोई को नैन नहीं बनाने आते, कोई को टांग नहीं बनाने आती। कोई मुस्कराहट नहीं बना सकते। तो फर्क पड़ जाता है ना। जितना सम्पन्न चित्र उतना मूल्यवान होता है। वो ही एक का चित्र लाखों का मूल्य कमाता और कोई 100 भी कमाता। तो अन्तर किस बात का हुआ? सम्पन्नता का। ऐसे ही ब्राह्मण आत्मायें भी सर्व रेखाओं में सम्पन्न न होने कारण किसी एक रेखा, दो रेखा की सम्पूर्णता न होने कारण नम्बरवार हो जाते हैं।

तो आज तकदीरवान बच्चों की तस्वीर देख रहे थे। जैसे स्थूल तकदीर में भी भिन्न-भिन्न तकदीर होती है। वैसे यहाँ तकदीर की भिन्न-भिन्न तस्वीरें देखी। हर तस्वीर में मुख्य मस्तक और नयन तस्वीर की वैल्यु बढ़ाते हैं। वैसे यहाँ भी मंसा वृत्ति की शक्ति और नयन के रूहानी दृष्टि की शक्ति, इसका ही महत्व होता। यही तस्वीर का फाउन्डेशन हैं। सभी अपनी तस्वीर को देखो कि हमारी तस्वीर कितनी सम्पन्न बनी है। ऐसी तस्वीर बनी है जो तस्वीर में तकदीर बनाने वाला दिखाई दे। हर एक रेखा को चेक करो। इसी कारण नम्बर हो जाता है। समझा।

दाता एक है, देता भी एक जैसा है। लेकिन बनाने वाले बनाने में नम्बरवार हो जाते। कोई अष्ट और ईष्ट देव बन जाते। कोई देव बन जाते। कोई देवों को देख-देख हर्षित होने वाले हो जाते। अपना चित्र देख लिया ना! अच्छा-

साकार रूप में मिलने में तो समय और संख्या को देखना पड़ता। और अव्यक्त मिलन में समय और संख्या की बात नहीं है। अव्यक्त मिलन के अनुभवी बन जायेंगे तो अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव सदा करते रहेंगे। बापदादा बच्चों के सदा आज्ञाकारी हैं। इसलिए अव्यक्त होते भी व्यक्त में आना पड़ता है। लेकिन बनना क्या है? अव्यक्त बनना है ना या व्यक्त में आना है? अव्यक्त बनो। अव्यक्त बनने से बाप के साथ निराकार बन घर में चलेंगे। अभी वाया की स्टेज तक नहीं पहुँचे हो। फरिश्ता स्वरूप से निराकार बन घर जा सकेंगे। तो अभी फरिश्ता स्वरूप बने हो! तकदीर की तस्वीर सम्पन्न की है? सम्पन्न तस्वीर ही फरिश्ता है। अच्छा-

सभी आये हुए भिन्न-भिन्न जोन के बच्चों को हर एक जोन की विशेषता सहित बापदादा देख-देख हर्षित हो रहे हैं। कोई भाषा भले नहीं जानते लेकिन प्रेम और भावना की भाषा जानने में होशियार हैं। और कुछ नहीं जानते लेकिन मुरली की भाषा जानते हैं। प्रेम और भावना से न समझने वाले भी समझ जाते हैं। बंगार बिहार तो सदा बहारी मौसम में रहते। सदा बहार है।

पंजाब है ही सदा सभी को हरा भरा करने वाला। पंजाब में खेती अच्छी होती है। हरियाणा तो है ही हरा भरा। पंजाब हरियाणा सदा हरियाली से हरा भरा है। जहाँ हरियाली होती है उस स्थान को सदा कुशल, श्रेष्ठ स्थान कहा जाता है। पंजाब हरियाणा सदा खुशी में हरा भरा है। इसलिए बापदादा भी देख-देख हर्षित होते हैं। राजस्थान की क्या विशेषता है? राजस्थान चित्र रेखा में प्रसिद्ध है। राजस्थान की तस्वीरें बहुत मूल्यवान होती हैं। क्योंकि राजे बहुत हुए हैं ना। तो राजस्थान तकदीर की तस्वीरें सबसे ज्यादा मूल्यवान बनाने वाले हैं। चित्रों की रेखा में सदा श्रेष्ठ हैं। गुजरात की क्या विशेषता है? वहाँ आइनों का श्रृंगार ज्यादा होता है। तो गुजरात दर्पण है। दर्पण कहो, आइना कहो। जिसमें बाप की मूर्त देखी जाए। आइने में शक्ल देखते हैं ना। तो गुजरात के दर्पण द्वारा बाप की तस्वीर फरिश्ता स्वरूप की तस्वीर सभी को दिखाने की विशेषता है। तो गुजरात की विशेषता है बाप को प्रत्यक्ष करने वाले दर्पण। बाकी छोटा-सा तामिलनाडु रह गया। छोटा ही कमाल करता है। बड़ा कार्य करके दिखाता है। तामिलनाडु क्या करेंगे? वहाँ मन्दिर बहुत हैं। मन्दिरों में नाद बजीते हैं। तामिलनाडु की विशेषता है - नगाड़ा बजाए बाप की प्रत्यक्षता का आवाज़ बुलन्द करना। अच्छी विशेषता है। छोटे-पन में भी नाद बजाते हैं। भक्त लोग भी बड़े प्यार से नाद बजाते हैं। और बच्चे भी प्यार से बजाते हैं। अब हरेक स्थान अपनी विशेषता को प्रत्यक्ष स्वरूप में लाओ। सभी जोन वालों से मिल लिया ना! आखिर तो ऐसा ही मिलना होगा। पुराने बच्चे कहते हैं हमको क्यों नहीं बुलाते। प्रजा भी बनाते, बढ़ाते भी रहते। तो पुरानों को नये-नयें को चांस देना पड़े तब तो संख्या बढ़े। पुरानें भी पुरानी चाल से चलते रहें तो नयों का क्या होगा! पुराने हैं दाता, देने वाले और नये हैं लेने वाले। तो चांस देना हैं इसमें दाता बनना पड़े। साकार मिलन में सब हद आ जाती हैं। अव्यक्त मिलन में कोई हद नहीं। कई कहते हैं संख्या बढ़ेगी फिर क्या होगा! साकार मिलन की विधि भी तो बदलेगी। जब संख्या बढ़ती हैं तो कुछ दान-पुण्य भी करना होता है। अच्छा-

सभी देश विदेश के चारों ओर के स्नेही बच्चों के स्नेह के दिल के आवाज़, खुशी के गीत और दिल के समाचार के पत्रों के रेसपान्ड में बापदादा सभी बच्चों को पदमगुणा यादप्यार के साथ रेसपान्ड दे रहे हैं कि सदा याद से अमर भव के वरदानी बन बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। सभी उमंग उत्साह में रहने वाले बच्चों को बापदादा स्व उन्नति और सेवा की उन्नति के लिए मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो। सदा साथ हो। सदा सम्पन्न और सम्पूर्ण हो, ऐसे सर्व वरदानी बच्चों को बापदादा फिर से यादप्यार दे रहे हैं। यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न आत्मा समझते हो! जो सम्पन्न है वह सदा आगे बढ़ते रहेंगे। सम्पन्नता नहीं तो आगे नहीं बढ़ सकते। तो जैसे बाप वैसे बच्चे। बाप सागर है बच्च्ो मास्टर सागर हैं। हर गुण को चेक करो- जैसे बाप ज्ञान का सागर है तो हम मास्टर ज्ञान सागर हैं। बाप प्रेम का सागर है तो हम मास्टर प्रेम के सागर हैं। ऐसे समानता को चेक करो तब बाप समान सम्पन्न बन सदा आगे बढ़ते जायेंगे। समझा- सदा ऐसी चेकिंग करते चलो। सदा इसी खुशी में रहो कि जिसको विश्व ढूंढता है, उसने हमको अपना बनाया है।